आज बांधना है अनंत को सीमाओं के बंधन में
और बांटनी है बस खुशियां क्या रखा है क्रंदन में
जग भर से व्यभिचार, कलुषता, द्वेष, दम्भ हर लेना है
यही प्रार्थना सच्ची , वरना क्या मंदिर क्या वंदन में।
और बांटनी है बस खुशियां क्या रखा है क्रंदन में
जग भर से व्यभिचार, कलुषता, द्वेष, दम्भ हर लेना है
यही प्रार्थना सच्ची , वरना क्या मंदिर क्या वंदन में।
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