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Monday, October 7, 2019

भागमभाग, रेलमपेल ,धक्कामुक्की,जीवन खेल
सुबह शाम , ना आराम, कितना काम , कैसी जेल
अपने लोग, पराये भोग, मन में जोग, कैसा मेल
आपाथापी, रागड़ापट्टी, जीवन का निकला है तेल।

Sunday, October 6, 2019

आज बांधना है अनंत को सीमाओं के बंधन में
और बांटनी है बस खुशियां क्या रखा है क्रंदन में
जग भर से व्यभिचार, कलुषता, द्वेष, दम्भ हर लेना है
यही प्रार्थना सच्ची , वरना क्या मंदिर क्या वंदन में।
तूफानों से टकराने की आज हृदय ने ठानी है
दुनिया कहती रुक जाओ तुम ये कैसी मनमानी है।
मैं कहती अनंत नापना है मुझको इस बार प्रिये
निश्चय गर हो दृढ़ तो इसमें भी फिर आसानी है।
तुलनायें हो रही थी तो घबरा रहा था वो
इस तरह अपने बढ़ने से कतरा रहे था वो
लोगों के अनुभवों से ,सीखने में थी झिझक
बस इसलिए गिर गिर के बढ़ा जा रहा था वो।
मैं तेरी हदों में समा नहीं सकता,
मैं आसमान हूँ खुद को झुका नहीं सकता,
तुझको मिलना है अगर मुझसे तो ऊपर उठ जा,
मैं किसी हाल में खुद को गिरा नहीं सकता।